Sat. Apr 20th, 2024
    प्रत्यक्ष कर (आयकर)

    अप्रत्यक्ष कर (जीएसटी) नियमों में बदलाव करने के बाद मोदी सरकार ने बुधवार को नए प्रत्यक्ष कर (आयकर) कानून का एक प्रारूप तैयार करने के लिए एक टास्क फोर्स का गठन किया। आप को जानकारी के लिए बता दें कि यह नया प्रत्यक्ष कर कानून 1961 से ही लागू मौजूदा आयकर अधिनियम की जगह लेगा।

    देश की समकालीन आर्थिक जरूरतों को ध्यान में रखते हुए, आठ साल बाद अरबिंद मोदी की अध्यक्षता में बनी सात सदस्यीय कमेटी जल्द ही नए प्रत्यक्ष कर प्रारूप की रिपोर्ट सरकार को सौंपेगी। प्रेस की ओर से जारी एक आधिकारिक बयान के अनुसार सीबीडीटी के सदस्य अरबिंद मोदी के इस पैनल में 7 सदस्य होंगे, जिसमें मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन को पैनल का स्थायी सदस्य नियुक्त किया गया है।

    अरबिंद मोदी की अगुवाई वाली यह कमेटी इनकम टैक्स और कॉर्पोरेट टैक्स को ध्यान में रखते हुए प्रत्यक्ष कर नियमों को आसान बनाने की कोशिश करेगी। जीएसटी लॉन्चिग के कुछ महीनों बाद इस प्रत्यक्ष कर को बनाने की प्रक्रिया शुरू की गई है, क्योंकि जीएसटी में केंद्रीय तथा राज्य सरकार की विभिन्न दरों, उत्पाद शुल्क, सर्विस टैक्स और वैट आदि को एक ही जगह समाहित कर दिया गया था।

    सितंबर महीने में आयोजित टैक्स आॅफिसर्स के वार्षिक सम्मेलन में पीएम मोदी ने संबोधित करते हुए कहा था कि मौजूदा आयकर अधिनियम-1961 आज से 50 साल पहले तैयार किया था, ऐसे में इस आयकर अधिनियम में दोबारा बदलाव लाने की जरूरत है।

    वित्त मंत्रालय ने बयान दिया है कि इस अधिनियम की समीक्षा करने तथा देश की आर्थिक जरूरतों को ध्यान में रखकर नए प्रत्यक्ष कर कानून का प्रारूप तैयार करने के लिए सरकार ने एक टास्क फोर्स का गठन किया है। इस टास्क फोर्स में अरबिंद मोदी, मुख्य आर्थिक सलाहकार अरविंद सुब्रमण्यन सहित गिरीश अहुजा (चार्टर्ड एकाउंटेंट), राजीव मेमन (अध्यक्ष और क्षेत्रीय प्रबंध सहयोगी ईआई), मुकेश पटेल (प्रैक्टिसिंग टैक्स एडवोकेट), मानसी केडिया (सलाहकार, आईसीआरआईईआर) और जीसी श्रीवास्तव (सेवानिवृत्त आईआरएस और एडवोकेट) शामिल हैं।

    यह टास्क फोर्स छह महीने के भीतर प्रत्यक्ष कर नियमों का प्रारूप तैयार कर अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपेगी। प्रत्यक्ष कर के इस प्रारूप में अंतरराष्ट्रीय टैक्स नियमों को भी शामिल किया जाएगा। साल 2009 में पूर्व वित्त मंत्री चिदंबरम नए प्रत्यक्ष कर कानून को लागू करने का प्रस्ताव रखा था, जिससे बोझिल आईटी नियमों में बदलाव कर करों को कम किया जा सके।

    उस दौरान अरबिंद मोदी ने प्रत्यक्ष कर का प्रारूप तैयार करने में पूर्व वित्त मंत्री चिदंबरम की सहायता की थी, लेकिन यह प्रत्यक्ष कर प्रारूप संसद में पारित नहीं हो पाया। आप को बता दें कि प्रत्यक्ष कर कानून विधयेक 2010, पार्लियामेंट में साल 2010 में प्रस्तावित किया गया था। लेकिन यह 15वीं लोकसभा के विघटन के साथ ही समाप्त हो गया।

    बिल के अनुसार वार्षिक आईटी छूट की सीमा 2 लाख रूपए, 2 लाख से 5 लाख रुपए के बीच की आय पर 10 प्रतिशत टैक्स, 5-10 लाख रुपये पर 20 प्रतिशत और 10 लाख से 30 फीसदी तक टैक्स लगाने का प्रस्ताव दिया गया था। घरेलू कंपनियों के लिए व्यापारिक आय का 30 फीसदी टैक्स निर्धारित करने का सुझाव दिया गया था।

    साल 2014 में एनडीए सरकार के सत्ता में आने के बाद सामान्य विरोध से बचने के लिए इन नियमों को लागू कर दिया गया। साल 2016 में वित्त मंत्री अरूण जेटली ने 5 साल के अंदर कॉर्पोरेट टैक्स की दर को 25 प्रतिशत करने का वादा किया। मौजूदा समय में प्रतिवर्ष 2.5 लाख रुपये तक की आय वाले व्यक्ति आयकर से मुक्त हैं।

    खेतान एंड कंपनी के संजय संघवी ने कहा, “सरकार का यह प्रस्ताव प्रशंसनीय है, लेकिन देश में मौजूद आयकर कानून पहले से ही अंतरराष्ट्रीय प्रेक्टिसेज में शमिल है जैसे गार, ट्रांसफर प्राइसिंग/सीबीसीआर, बीईपीएस आदि। ऐसे में पूरे कानून को बदलने के बजाय, सरकार को मौजूदा कानून में ही संशोधन करना चाहिए ताकि विवादास्पद प्रावधानों और मुकदमों को कम किया जा सके।”

    प्रत्यक्ष कर नियमों में बदलाव से इंश्योरेंस कंपनियों को कर बृद्धि का सामना करना पड़ेगा, जिससे उनके प्रॉफिट मार्जिन में गिरावट आएगी।
    मौजूदा समय में लाइफ इंश्योरेंस कंपनियां कॉर्पोरेट टैक्स दरों पर 14.3 फीसदी आयकर भुगतान करती हैं लेकिन प्रत्यक्ष कर में बदलाव किए जाने बाद इन्हें 25 फीसदी टैक्स पेमेंट करना होगा। ऐसे में इंश्योरेंस कंपनियों का घाटे में जाना सुनिश्चित है।