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    भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने उत्तर प्रदेश में सत्तारूढ़ पार्टी के अगले चुनाव प्रभारी के रूप में गुजरात के राजनीतिज्ञ, गोवर्धन ज़दाफिया को नियुक्त करके पार्टी में सभी को चौंका दिया। 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में नरेंद्र मोदी के वाराणसी से चुनाव मैदान में उतरने के बाद अमित शाह ने खुद उत्तर प्रदेश जिताने की बागडोर अपने हाथों में संभाल ली थी।

    गुजरात के पूर्व मंत्री के करीबी सहयोगी ने कहा, “उन्हें इस बात का जरा भी अंदेशा नहीं था कि इस बार उत्तर प्रदेश जैसा महत्वपूर्ण राज्य जिताने की जिम्मेदारी उनके पास आ रही थी।”

    64 वर्ष के ज़ादफिया को सौंपी गई नई जिम्मेदारी प्रधानमंत्री मोदी और शाह के भरोसे को दर्शाती है। गुजरात के सौराष्ट्र के  इस लेउवा पाटीदार नेता ने गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान पाटीदार आन्दोलन के बावजूद पाटीदारों को भाजपा के पक्ष में करने की जिम्मेदारी परदे के पीछे रहते हुए निभाई थी। गुजरात में पाटीदार आरक्षण आन्दोलन ने भाजपा को मुश्किल में डाला लेकिन कम बहुमत के साथ राज्य की सत्ता बनाये रखने में कामयाब रही।

    जादाफिया के मददगार के रूप में आरएसएस की जड़ों से जुड़े सुनील बंसल को चुनना शाह के उस रणनीति की ओर  इशारा करता है कि एक बेहतरीन टीम, चुनाव का बेहतर प्रबंधन कर सकती है। एक वो नेता है जो गुजरात चुनाव के दौरान मुश्किल परिस्थितियों में भी अपने प्रबंधन कौशल को साबित कर चूका है और दूसरा आरएसएस से निकला नेता जो जानता है कि संगठन की ताकत को कैसे इस्तमाल करना है।

    2014 में जब नरेंद्र मोदी को वाराणसी से पार्टी का उम्मीदवार बनाया गया था तो इसके पीछे उत्तर प्रदेश फतह करने की रणनीति थी क्योंकि उस भाजपा जानती थी कि दिल्ली का रास्ता उत्तर प्रदेश हो कर जाता है। उसके बाद मोदी ने अपने सबसे भरोसेमंद शाह को को उत्तर प्रदेश भेजा था। शाह ने अपना काम बखूबी किया था और राज्य की 80 में से 71 सीटें पार्टी की झोली में डाल दी थी।

    शाह को 2014 का मैं ऑफ़ द मैच कहते हुए अब पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया तो ओम माथुर को विधानसभा चुनावों के दौरान उत्तर प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी गई और उन्होंने भाजपा को राम लहर से भी बड़ी जीत दिला कर अपना काम पूरा किया।

    बंसल को उत्तर प्रदेश में संगठन मंत्री बना कर भेजा गया है। संगथ्मन मंत्री भाजपा में वो पद है जो आरएसएस के लिए आरक्षित है। अब जब 2019 के लिए समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी गठबंधन कर के चुनाव में उतरने की तैयारी कर रहे तो भाजपा के लिए इस सबसे महत्वपूर्ण राज्य की लड़ाई मुश्किल हो गई है।

    ज़दाफिया के आरएसएस से अच्छे रिश्ते हैं और भाजपा में काम करने का अनुभव भी है।

    ज़ादाफिया का भाजपा में सफ़र 

    ज़ादाफिया को केशुभाई पटेल का करीबी माना जाता था। अक्टूबर 2001 में जब केशुभाई को हटा कर नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया उस वक्त जादाफिया राज्य के जूनियर गृह मंत्री थे। 2002 में जब नरेंद्र मोदी चुनाव जीत कर दुबारा मुख्यमंत्री बने तो ज़ादाफिया को मंत्रिमंडल में शामिल नहीं किया गया लेकिन 2005 में जब कैबिनेट का विस्तार किया गया तो जादाफिया ने शपथ ग्रहण से इनकार कर दिया

    2007 में जादाफिया ने भाजपा को छोड़ कर महागुजरात जनता पार्टी नाम से नई पार्टी का गठन किया और 2009 के लोकसभा चुनाव में 2.3 फीसदी वोट हासिल कर सकी। पार्टी एक भी सीट नहीं जीत सकी लेकिन 3 सीटों पर भाजपा को नुकसान पहुँचाया।

    2012 में जादाफिया ने केशुभाई पटेल की गुजरात परिवर्तन पार्टी में अपनी पार्टी का विलय कर दिया लेकिन 2012 के विधानसभा चुनाव में पार्टी सिर्फ 2 ही सीट हासिल कर सकी। उसके बाद गुजरात परिवर्तन पार्टी ने भाजपा में अपना विलय कर लिया और इस तरह जादाफिया की घर वापसी हुई।

    By आदर्श कुमार

    आदर्श कुमार ने इंजीनियरिंग की पढाई की है। राजनीति में रूचि होने के कारण उन्होंने इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़ कर पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखने का फैसला किया। उन्होंने कई वेबसाइट पर स्वतंत्र लेखक के रूप में काम किया है। द इन्डियन वायर पर वो राजनीति से जुड़े मुद्दों पर लिखते हैं।

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