Wed. Apr 24th, 2024
    guru purnima essay in hindi

    आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा उत्सव कहा जाता है। इस दिन गुरु पूजन का विधान है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु की शुरुआत में आती है। इस दिन से चार महीने के लिए, परिव्राजक साधु-संत एक ही स्थान पर रह रहे हैं और वे ज्ञान की गंगा के साथ धन्य हैं। ये चार महीने मौसम के हिसाब से भी बेहतरीन होते हैं। न ज्यादा गर्मी और न ज्यादा सर्दी। इसलिए, उन्हें अध्ययन के लिए उपयुक्त माना जाता है।

    जैसे सूर्य-गर्म भूमि वर्षा से ठंड और फसल पैदा करने की शक्ति प्राप्त करती है, वैसे ही गुरु-चरण में मौजूद साधकों के पास ज्ञान, शांति, भक्ति और योग शक्ति प्राप्त करने की शक्ति है।

    विषय-सूचि

    गुरु पूर्णिमा पर निबंध, guru purnima essay in hindi (100 शब्द)

    गुरु पूर्णिमा एक प्रसिद्ध भारतीय त्योहार है। हिन्दू और बोद्ध धर्म द्वारा इसे पूरे हर्ष और उल्लास के साथ मनाता है। इस हिंदू कैलेंडर के अनुसार, आषाढ़ महीने की पूर्णिमा को मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा गुरु के प्रति श्रद्धा और समर्पण का त्योहार है। यह त्योहार गुरु के सम्मान और सम्मान का त्योहार है। ऐसा माना जाता है कि इस दिन गुरु की पूजा करने से उनके शिष्यों को गुरु की दीक्षा का पूरा फल मिलता है।

    गुरु का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। ‘गु’ का अर्थ है अंधकार (अज्ञान) और र ’का अर्थ है प्रकाश (ज्ञान)। गुरु हमें अज्ञान और अंधकार से ज्ञान की ओर ले जाता है। भावी जीवन का निर्माण गुरु द्वारा ही किया जाता है।

    गुरु पूर्णिमा के अवसर पर गुरुओं का सम्मान करते हैं। इस अवसर पर, आश्रमों में पूजा का एक विशेष आयोजन किया जाता है। इस पर्व पर विभिन्न क्षेत्रों में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले वेलेरियन सम्मान हैं। लोगों के सम्मान में साहित्य, संगीत, नाटक, चित्रकला आदि क्षेत्रों के लोग शामिल होते हैं। कई स्थानों पर कथा, कीर्तन, और भंडारे का आयोजन किया जाता है। इस दिन गुरु के नाम पर दान का भी प्रावधान है।

    गुरु पूर्णिमा पर निबंध, guru purnima essay in hindi (200 शब्द)

    युग कोई भी रहा हो, हमेशा गुरु का सम्मान होता रहा है। संत कबीरदास ने भी गुरु को गोविंदा से महान बताते हुए उनका महिमामंडन करने की बात कही है। हर युग में, गुरु सदैव पूजनीय रहे हैं और रहेंगे। सदियों पुरानी गुरु पूजन परंपरा आज भी जीवित है। गुरु पूर्णिमा गुरु पूर्णिमा गुरु पूजा का विशेष महत्व है। शिष्यों में शिक्षक के प्रति सम्मान में कोई कमी नहीं है।

    अर्जुन अर्जुन के गुरु द्रोणाचार्य से, मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर के गुरु रमाकांत आचरेकर ने गुरु की विश्वसनीयता बनाए रखी है। आज भी जब छात्र किसी भी परीक्षा में प्रथम आता है, तो सबसे पहले अपने गुरु को श्रेय देता है। वह गुरु है जो अपने शिष्य की योग्यता को पहचानता है और उसकी देखभाल करता है। गुरु जीवन का सही रास्ता बताता है और भक्तों को सही रास्ते पर लाता है।

    गुरु के बिना कोई भी महान होने की कल्पना नहीं कर सकता। प्रत्येक गुरु की यही इच्छा होती है कि उसका शिष्य श्रेष्ठ और कमाऊ नाम और प्रसिद्धि प्राप्त करे लेकिन गुरु कभी भी यश की सफलता और नाम नहीं मांगता और अपने शिष्य पर ध्यान केंद्रित करता है। यही कारण है कि कबीरदास ने गुरु को भगवान से भी ऊंचा दर्जा दिया है। गुरु की शिक्षा द्वारा भगवान को आत्मसात करना

    आज संत महात्मा की वाणी हमें ईश्वर का मार्ग दिखाती है। समय बदल गया है और आगे भी बदल जाएगा लेकिन किसी को भी गुरु का पद नहीं मिला है और न ही कोई इसे ले पाएगा। गुरुकुल से लेकर आधुनिक स्कूलों तक में गुरु का विशेष स्थान रहा है। आज भी गांवों में शिक्षक गुरुजी को संबोधित कर रहे हैं। एक समय था जब गांवों के निर्णय में, सरपंच बिना पंच के गुरु के समझौते पर जाता है।

    आज हर क्षेत्र में गुरु आध्यात्मिक, शिक्षा, खेल, साहित्य आदि हैं। महापुरुषों ने कहा है कि यदि किसी को सफलता प्राप्त करनी है तो सबसे पहले एक अच्छे गुरु की तलाश करनी चाहिए। बिना गुरू शिक्षा के सफलता पाना मुश्किल है। गुरु, गुरु विष्णु, गुरु देव, और कई अन्य किरणों की महिमा का वर्णन करने के लिए पर्याप्त है, लेकिन वास्तविकता यह है कि गुरु कृपा और अनुग्रह के समानांतर है।

    गुरु के कई रूप हैं जो अपने शिष्यों से स्नेह रखते हैं। कभी पिता, कभी भाई, कभी मित्र बनकर शिष्यों का मित्र बन जाता है। गुरु की कोई सीमा नहीं है। अपने शिष्य को उच्च पद पर देखना एक गुरु का सबसे बड़ा सपना होता है। यदि शिष्य असफल हो जाता है, तो गुरु उसे निराश हुए बिना खड़े होने के लिए प्रोत्साहित करता है।

    गुरु राष्ट्र का निर्माण करता है, बच्चा देश का भविष्य है, लेकिन उन्हें देश की सेवा करने के लिए प्रेरित करने का काम गुरु के हाथों में है। वर्तमान में, भारत में फिर से विश्व शिक्षक बनने की क्षमता है, इसका मुख्य कारण गुरु की शिक्षा है।

    गुरु पूर्णिमा पर निबंध, guru purnima essay in hindi (300 शब्द)

    गुरू पूर्णिमा का पर्व पूरे देश मनाया जाना स्वाभाविक है। भारतीय अध्यात्म में गुरु का अत्ंयंत महत्व है। सच बात तो यह है कि आदमी कितने भी अध्यात्मिक ग्रंथ पढ़ ले जब तक उसे गुरु का सानिध्य या नाम के अभाव में ज्ञान कभी नहीं मिलेगा वह कभी इस संसार का रहस्य समझ नहीं पायेगा। इसके लिये यह भी शर्त है कि गुरु को त्यागी और निष्कामी होना चाहिये।

    दूसरी बात यह कि गुरु भले ही कोई आश्रम वगैरह न चलाता हो पर अगर उसके पास ज्ञान है तो वही अपने शिष्य की सहायता कर सकता है। यह जरूरी नही है कि गुरु सन्यासी हो, अगर वह गृहस्थ भी हो तो उसमें अपने त्याग का भाव होना चाहिये। त्याग का अर्थ संसार का त्याग नहीं बल्कि अपने स्वाभाविक तथा नित्य कर्मों में लिप्त रहते हुए विषयों में आसक्ति रहित होने से है।

    हमारे यहां गुरु शिष्य परंपरा का लाभ पेशेवर धार्मिक प्रवचनकर्ताओं ने खूब लाभ उठाया है। यह पेशेवर लोग अपने इर्दगिर्द भीड़ एकत्रित कर उसे तालियां बजवाने के लिये सांसरिक विषयों की बात खूब करते हैं। श्रीमद्भागवतगीता में वर्णित गुरु सेवा करने के संदेश वह इस तरह प्रयारित करते हैं जिससे उनके शिष्य उन पर दान दक्षिण अधिक से अधिक चढ़ायें। इतना ही नहीं माता पिता तथा भाई बहिन या रिश्तों को निभाने की कला भी सिखाते हैं जो कि शुद्ध रूप से सांसरिक विषय है।

    श्रीमद्भागवत गीता के अनुसार हर मनुष्य अपना गृहस्थ कर्तव्य निभाते हुए अधिक आसानी से योग में पारंगत हो सकता है। सन्यास अत्यंत कठिन विधा है क्योंकि मनुष्य का मन चंचल है इसलिये उसमें विषयों के विचार आते हैं। अगर सन्यास ले भी लिया तो मन पर नियंत्रण इतना सहज नहीं है। इसलिये सरलता इसी में है कि गृहस्थी में रत होने पर भी विषयों में आसक्ति न रखते हुए उनसे इतना ही जुड़ा रहना चाहिये जिससे अपनी देह का पोषण होता रहे।

    गृहस्थी में माता, पिता, भाई, बहिन तथा अन्य रिश्ते ही होते हैं जिन्हें तत्वज्ञान होने पर मनुष्य अधिक सहजता से निभाता है। हमारे कथित गुरु जब इस तरह के सांसरिक विषयों पर बोलते हैं तो महिलायें बहुत प्रसन्न होती हैं और पेशेवर गुरुओं को आजीविका उनके सद्भाव पर ही चलती है।

    समाज के परिवारों के अंदर की कल्पित कहानियां सुनाकर यह पेशेवक गुरु अपने लिये खूब साधन जुटाते हैं। शिष्यों का संग्रह करना ही उनका उद्देश्य ही होता है। यही कारण है कि हमारे देश में धर्म पर चलने की बात खूब होती है पर जब देश में व्याप्त भ्रष्टाचार, अपराध तथा शोषण की बढ़ती घातक प्रवृत्ति देखते हैं तब यह साफ लगता है कि पाखंडी लोग अधिक हैं।

    [ratemypost]

    इस लेख से सम्बंधित अपने सवाल और विचार आप नीचे कमेंट में लिख सकते हैं।

    By विकास सिंह

    विकास नें वाणिज्य में स्नातक किया है और उन्हें भाषा और खेल-कूद में काफी शौक है. दा इंडियन वायर के लिए विकास हिंदी व्याकरण एवं अन्य भाषाओं के बारे में लिख रहे हैं.

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *