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    insectivorous plants in hindi

    विषय-सूचि

    कीटाहारी पौधे क्या हैं? (insectivorous plants meaning in hindi)

    इस प्रकार के पौधे कीड़ों या कीटों को फँसाकर खाने में सक्षम होते हैं, अतः इन्हे कीटाहारी पौधे (insectivorous plants) कहा जाता है।

    पोषण के साधन के मामले में यह दूसरे पौधों से भिन्न होते हैं। हालाँकि ये किसी बड़े जानवर या इंसानों का शिकार नहीं करते।

    जिस प्रकार ये अपने शिकार को फँसाते हैं, उस आधार पर इन पौधों को दो भागों में बांटा गया है:

    • सक्रिय (Active): जैसे ही कोई पौधे इनके पत्तों पर बैठता है, यह पौधे उनको पत्तों की मदद से फंसा लेते हैं।
    • निष्क्रिय (Passive): इन पौधों के पास एक मटकी (Pitcher) जैसी संरचना होती है। जब कोई कीड़ा फिसलकर इस मटकी में गिर जाता है तो पौधे उसे पचा लेते हैं।

    कीटाहारी पौधों की बहुत सूंदर संरचना होती है एवं ये बहुत अच्छे सुगंध छोड़ते हैं, जिससे कीड़े आकर्षित होकर इनके पास आ सकें। हमारे देश में कीटाहारी पौधों को लुप्तप्राय (endangered) पौधों की श्रेणी में शामिल किया गया है।

    कीटाहारी पौधों के पास दूसरे पौधों की तरह साधारण जड़ होता है एवं वे प्रकाश संश्लेषण प्रक्रिया का भी अनुसरण करते हैं।

    ये पौधे बहुत बारिश वाले क्षेत्र, जहाँ की मिटटी पोषण रहित होती है एवं गीले व अल्मीय (acidic) भागों में पाए जाते हैं।

    इस प्रकर के आर्द्रभूमि (wetland) अवायवीय (anaerobic) स्थितियों के कारण अम्लीय होते हैं जिससे कार्बोनिक पदार्थों (organic matter) का आंशिक अपघटन (decomposition) होता है जिससे वातावरण में अम्लीय योगिक रिहा होते हैं।

    कीटाहारी पौधे वाली जगहें (Places where Insectivorous Plants are Found in Hindi)

    जो सूक्ष्मजीव कार्बोनिक पदार्थों के अपघटन के लिए जिम्मेदार रहते हैं वे ऐसे अम्लीय एवं कम ऑक्सीजन सहित अवस्थाओं में जिन्दा नहीं रह सकते।

    साधारण पौधे भी इस प्रकर की परिस्थितियों में जिन्दा नहीं रह सकते। शिकार करने वाले पौधे ऐसी जगहों पर आसानी से रह लेते हैं क्योंकि वो कीड़ों को खाकर पोषक तत्वों की आवश्यकता को पूरा कर लेते हैं।

    भारत में पाए जाने वाले कीटाहारी पौधे

    हमारे देश में पाए जाने वाले कीटाहारी पौधे तीन वर्ग में आते हैं:

    • Droseraceae (3 प्रजाति)
    • Nepanthaceae (1 प्रजाति)
    • Lentibulariaceae (36 प्रजाति)

    Drosera एवं Aldrovanda

    यह दोनों पौधे Droseraceae वर्ग में आते हैं। ड्रोसेरा पौधा गीले अनुपजाऊ या दलदल (marshy) जगहों पर पाए जाते हैं। अल्ड्रोवाण्डा खुले में बहता हुआ एवं बिना जड़ का जलीय पौधा है जो सुंदरवन डेल्टा के लवणीय पानियों में पाए जाते हैं। यह तालाब, झील आदि जगहों पर भी उगते हैं। भारत में इनकी एक ही प्रजाति पायी जाती है।

    ड्रोसेरा पौधों के पत्तों पर कांटे (tentacles) लगे हुए होते हैं, जो एक चिपचिपा पदार्थ छोड़ते हैं। ये पदार्थ सूर्य की रौशनी में ओस की तरह चमकते हैं, अतः इन पौधों को sundew भी कहा जाता है।

    पत्तों पर मौजूद चमकते हुए पदार्थों को देखकर जब कोई कीड़ा इन पत्तों पर आता है तो वह चिपचिपे पदार्थों के बीच फंस जाता है। फिर पौधे उस कीड़े को सोख लेते हैं एवं निगल जाते हैं।

    अल्ड्रोवाण्डा पौधों के पत्तों मध्य भाग पर सूक्ष्म प्रकार के लम्बे लम्बे लटें पाए जाते हैं। जैसे ही कोई कीड़ा इन पौधों की तरफ आता है, दोनों तरफ से सूक्ष्म लटें उसको फंसा लेती हैं एवं निगल जाते हैं। इस प्रकार इनको अपना आहार मिल जाता है।

    Pitcher पौधों के वर्ग

    यह पौधे Nepenthaceae वर्ग में आते हैं। इन पौधे के पत्तों के साथ एक मटकी जैसी संरचना होती है। यह भारत के उत्तर पूर्वी भाग में पाए जाते हैं, जहाँ भारी बारिश होती है, जहाँ ऊंचाई 1000 से 1500 मीटर के बीच है। मेघालय के गारो, खासी एवं जैयन्तिया पहाड़ों में ये काफी मिलते हैं।

    इन पौधों के pitcher वाले भाग से शहद के प्रकार का पदार्थ निकलता रहता है। जैसे ही कोई कीड़ा इनके संपर्क में आता है, वह गिरकर इन पिचर में फंस जाता है।

    पिचर के अंदरूनी भाग में बहुत सारे ग्रंथि बने होते हैं जिनसे प्रोटोलाइटिक नामक एंजाइम स्रावित करता है। यह एंजाइम कीड़ों को पचा देते हैं और उनके पोषक तत्वों को सोख लेते हैं।

    Utricularia और Pinguicula

    यह दोनों पौधे Lentibulariaceae वर्ग में आते हैं।

    Utricularia

    यह पौधे तालाब, नदियों, झीलों या जहां साफ़ पानी जमा हो गया हो – ऐसी जगहों पर पाए जाते हैं। कुछ प्रजाति काई से ढके हुए पत्थरों एवं बारिश के कारण गीले हुए मिटटी पर भी उग आते हैं।

    इन पौधों के पास कटोरे के आकार का मुँह होता है, जिनके सूक्ष्म तंतु लगे होते हैं।

    जब कीड़े इन तंतुओं के पास आते है तो कटोरे का मुँह खुलता है एवं पानी की एक धार छूटती है, फिर कीड़े अंदर की तरफ खिंच लिए जाते हैं। फिर मुँह बंद हो जाता है।

    कटोरे के अंदरूनी भाग से एंजाइम निकलते हैं जो कीड़ों को पचा लेते हैं।

    Pinguicula

    यह हिमालय के ऊँचे या अल्पाइन भागों में पाए जाते हैं। कश्मीर से लेकर सिक्किम तक पानी के प्रवाह के किनारे ठन्डे दलदली भागों में पाए जाते हैं।

    इन पौधों का पत्ता ही फंदे के रूप में काम करते हैं। जब कोई कीड़े इन पत्तों के ऊपर आता है, तो यह एक चिपचिपे भाग में फंस जाता है। फिर पत्ते बंद हो जाते हैं और कीड़े को खा लेने के बाद फिर खुलते हैं।

    कीटाहारी पौधों के औषधीय गुण (Medical Properties of Insectivorous Plants in Hindi)

    • ड्रोसेरा पौधों से एक प्रकार का दूध निकलता है जो छालों पर लगाया जाता है। यह कपड़ों को डाई करने में भी उपयोग आता है।
    • Nepenthes पौधे हैजा के इलाज में लाभदायक है। pitcher के अंदर पाया जाने वाला द्रव्य पेशाब सबंधी बीमारियों को ठीक करने में काम आता है। यह आँखों के ड्रॉप के रूप में भी उपयोग किया जाता है।
    • Utricularia खांसी के समय, घाव को ठीक करने में काम आता है।

    खतरा (Dangers in the case of Insectivorous Plants in Hindi)

    • इनकी चिकित्सीय विशेषताओं के कारण यह पौधे ख़त्म हो रहे हैं।
    • शहरी और गांव के विकास के कारण भी यह पौधे उखारे जा रहे हैं।
    • मिट्टी में डिटेर्जेन, खाद, नाले के पानी, पेस्टिसाइड आदि की मात्रा बढ़ने के कारण भी इनका पतन हो रहा है। कीटाहारी पौधे ऐसे मिट्टी में नहीं उग पाते हैं।
    • प्रदूषित पानी के कारण जंगली घास बहुत उगते हैं, जो कीटाहारी पौधों को ख़त्म कर देते हैं।

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