Sat. May 18th, 2024
    किराए का मकान, निजी घर

    इस दुनिया का करीब हर शख्स अपना एक नया आशियाना बनाना चाहता है। वहीं बहुत कम लोग ही हैं जो किराए के मकान में रहना चाहते हैं। अब जब कि पिछले कुछ महीनों से मकानों की कीमत में कमी आई है और होम लोन रेट भी पिछले सात सालों में अपने न्यूनतम स्तर पर है। ऐसे में ये बात आप जरूर सोच रहे होंगे कि आपके लिए अपना घर बनाना किस हद तक सही होगा?

    अपना घर खरीदने के फायदे

    नोटबंदी के बाद से जमीनों और मकानों के दाम गिरे हैं। रियल स्टेट में नोटबंदी के बाद से 60 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। इसकी सबसे बड़ी वजह है कैश ट्रांजैक्शन का खत्म हो जाना। नकदी लेन देन की कमी और सिस्टम में आई पारदर्शिता के चलते रियल एस्टेट कारोबारियों से जमीन-मकान खरीदना आसान हो चुका है।

    यही नहीं आप मकान खरीदने के लिए आसानी से लोन भी ले सकते हैं क्योंकि नोटबंदी के बाद पिछले सात सालों में लोन रेट अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुका है। रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया ने अगस्त में अपनी द्वैमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा के बाद रेपो दर 0.25 फीसदी घटाकर 6.0 फीसदी कर दिया।

    सितंबर 2010 के बाद पहली बार रेपो दर घटी है। ऐसे में बैंकों ने मकान, दुकान और कारोबार के लिए कर्ज दर बिल्कुल सस्ता कर दिया है। गरीब और मध्यम वर्ग के परिवार को लोगों को आवासीय ऋण भी उपलब्ध कराए जाने की योजना शुरू कर चुकी है।

    ऐसे में यदि आप के पास पैसे हैं तो कुछ अग्रिम अमाउंट जमा करवा बाकी सस्ते लोन लेकर कही भी मकान और जमीन के मालिक बन सकते हैं। अन्यथा भविष्य में इकॉनोमी सुधरते ही मकान और जमीनें खरीदना आपके वश के बाहर की चीज होगी।

    किराए का मकान?

    अगर आर्थिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो किराए के मकान में रहना कुछ कम फायदेमंद नहीं है। अगर आप 45 रुपए प्रति महीने के हिसाब से 10 साल तक एसआईपी डालते हैं तो अगले दस साल में 12 प्रतिशत ग्रोथ के सा​थ यह रकम 1 करोड़ रुपए हो जाएगी। जब कि वर्तमान परिस्थिति प्रॉपर्टी वैल्यू में ढाई गुना की वृद्धि होना संभव नजर नहीं आ रहा है।

    दूसरी ओर आजकल युवा जिस तरीके की जॉब कर रहे हैं, उसमें जगह की कोई सुनिश्चितता नहीं है। आज दिल्ली तो कल बेंगलुरू, मुंबई या फिर विदेश के किसी शहर में जाकर नौकरी करने लगते हैं। अगर आपने अपना नया आशियाना बना ​भी लिया तो फिर आप अपने इकॉनोमी डेवलपमेंट पर ध्यान नहीं दे सकते हैं। दूसरे शहरों की बात तो दूर दिल्ली जैसे शहर में भी एक कोने से दूसरे कोने में जाने में काफी समय लग जाता है।

    वहीं दूसरी ओर हालिया सर्वे में इस बात का खुलासा हुआ है कि किराए के मकान में रहने वाले लोग बहुत जल्द ही अवसाद के शिकार हो जाते हैं। सर्वे में यह भी पाया गया है जो ​व्यक्ति जितने ज्यादा दिनों तक किराए के मकान में रहता है, उसके मानसिक स्वास्थ्य पर उतना ही ज्यादा दुष्प्रभाव पड़ता है।