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    चेन्नई, 30 मई (आईएएनएस)| तमिलनाडु में कांग्रेस ने आम चुनाव में नौ सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, जिसमें से पार्टी ने आठ सीटों पर कब्जा जमाया और 12 प्रतिशत वोट प्राप्त किया है। इसके बाद यह सवाल उठा कि क्या राज्य में कांग्रेस फिर से अपने पैरों पर खड़ी हो रही है?

    पार्टी ने 1967 में राज्य में सत्ता गंवा दी थी और उसके बाद यह अन्नाद्रमुक या द्रमुक की पिछलग्गू बनकर रह गई है और अपने पैरों पर खड़े होने में इसे काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।

    राजनीतिक विश्लेषक तमिलनाडु में कांग्रेस के उभार पर अलग-अलग मत रखते हैं।

    राजनीतिक विश्लेषक रविधरन दुरईस्वामी ने आईएएनएस से कहा, “निश्चित ही, कांग्रेस तमिलनाडु में पुनर्जीवित होने की स्थिति में हैं। यह जीत केवल द्रमुक के साथ होने की वजह से नहीं मिली है। पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन कई वजहों के एक साथ होने की वजह से किया जो इसके और द्रमुक के पक्ष में थे।”

    दुरईस्वामी के अनुसार, तमिलनाडु के मतदाताओं ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को वोट दिया, जिन्हें द्रमुक अध्यक्ष एम. के. स्टालिन ने प्रधानमंत्री के चेहरे के तौर पर पेश किया था।

    उन्होंने कहा कि तमिलनाडु ने पहले भी राष्ट्रीय रुझानों से अलग तस्वीर पेश की है। आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनाव में यहां लोगों ने कांग्रेस को वोट दिया था। लोगों ने 1989 में राजीव गांधी के लिए मतदान किया था और अब फिर से लोगों ने राहुल गांधी वोट दिया है।

    दुरईस्वामी ने कहा कि कांग्रेस के प्रति कई अन्य लोगों ने भी सरोकार जताया है और इसके लिए उन्होंने अभिनेता-राजनेता रजनीकांत की अपील का भी हवाला दिया, जिसमें उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से पार्टी अध्यक्ष पद नहीं छोड़ने की अपील की है।

    अन्य राजनीतिक विश्लेषक जॉन अरोकियासामी ने कहा कि राज्य में लड़ाई स्पष्ट तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी के बीच थी।

    अरोकियासामी ने कहा कि कार्ति चिदंबरम समेत अन्य प्रमुख चेहरों का जीतना कांग्रेस पार्टी के तमिलनाडु में कुछ हद तक पुनर्जीवित होने का संकेत है।

    अरोकियासामी ने कहा, “अल्पसंख्यक वोट का द्रमुकनीत गठबंधन के पक्ष में लामबंद होना मुश्किल होता अगर कांग्रेस गठबंधन का हिस्सा नहीं होती या फिर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में पेश नहीं किया जाता।”

    तमिलनाडु कांग्रेस के प्रवक्ता गोपन्ना ने कहा कि पार्टी की आठ सीटों की जीत राज्य में मोदी विरोधी लहर की वजह से हुई है। उनकी इस सोच से मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट स्टडीज के एसोसिएट प्रोफेसर सी. लक्ष्मणन भी सहमति जताते हैं।

    लक्ष्मणन के अनुसार, राज्य में किसी भी पार्टी के पक्ष में कोई लहर नहीं थी लेकिन यहां मोदी के खिलाफ बहुत तगड़ी लहर थी।

    लक्ष्मणन ने कहा, “अगर कांग्रेस ने अकेले चुनाव लड़ा होता तो उसके लिए अपने वोट प्रतिशत को बरकरार रखने में कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ता।”

    गोपन्ना ने कहा, “पारंपरिक रूप से, तमिलनाडु के मतदाता ऐसे गठबंधन को पसंद करते हैं जिसमें कांग्रेस शामिल हो।”

    गोपन्ना ने स्टालिन की धर्मनिरपेक्ष गठबंधन बनाने और गठबंधन के अपने साथियों के साथ आसानी से सीट शेयर करने के लिए सराहना की और कहा कि इसके बिना जीत मिलना मुश्किल था।

    गोपन्ना ने कहा कि कांग्रेस का 12 प्रतिशत का वोट शेयर द्रमुकनीत गठबंधन की वजह से आ पाया है।

    कांग्रेस ने 2014 में राज्य में अकेले चुनाव लड़ा था और पार्टी को केवल 4.3 प्रतिशत वोट मिले थे।

    अन्नाद्रमुक के वोट शेयर में इस बार जबरदस्त गिरावट आई। 2014 में पार्टी ने 44 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 37 लोकसभा सीट जीती थी। इस बार पार्टी को केवल 18.48 प्रतिशत मत प्राप्त हुए।

    द्रमुकनीत गठबंधन ने 2019 में 52 प्रतिशत वोट प्राप्त किया है, जिसमें से द्रमुक ने अकेले 32.76 प्रतिशत मत प्राप्त किया।

    गोपन्ना ने कहा, “यह दोहरी सत्ता विरोधी लहर थी जिसने हमारे पक्ष में काम किया। लोग राज्य में अन्नाद्रमुक और केंद्र में भाजपा से खुश नहीं थे।”

    By पंकज सिंह चौहान

    पंकज दा इंडियन वायर के मुख्य संपादक हैं। वे राजनीति, व्यापार समेत कई क्षेत्रों के बारे में लिखते हैं।

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