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    कोरोना से देश भर में हर दिन हजारों लोगों की मौत हो रही है। इस बीच आईसीएमआर और एम्स ने बड़ा फैसला लिया है। कोविड-19 उपचार के लिए जारी गाइडलाइन में संशोधन किया गया है और मरीजों के उपचार के लिए प्लाज्मा थेरेपी के उपयोग को नैदानिक प्रबंधन दिशा-निर्देश से हटा दिया। सरकार ने पाया कि कोविड-19 मरीजों के उपचार में प्लाज्मा थेरेपी गंभीर बीमारी को दूर करने और मौत के मामलों को कम करने में फायदेमंद साबित नहीं हुई।

    भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद यानी आईसीएमआर के एक के एक अधिकारी ने बताया कि कार्यबल ने क्लीनिकल गाइडेंस फार मैनेजमेंट आफ अडल्ट कोविड-19 पेशेंट्स को संशोधित कर दिया है और उसमें से स्वस्थ हुए व्यक्ति के प्लाज्मा (आफ लेबल) को हटा दिया है। पिछली गाइडलाइंस में मध्यम स्तर की बीमारी के शुरआती दौर में (लक्षण दिखने के सात दिनों के भीतर) प्लाज्मा थेरेपी के ‘आफ लेबल’ इस्तेमाल की सिफारिश की गई थी।

    अब तक, भारत के कोविड-19 उपचार प्रोटोकॉल ने कॉन्वेलसेंट प्लाज्मा (ऑफ लेबल) के उपयोग की अनुमति दी थी। इसकी केवल प्रारंभिक मध्यम बीमारी के चरण में यानी लक्षणों की शुरुआत के सात दिनों के भीतर और जरूरतें पूरा करने वाला प्लाज्मा दाता मौजूद होने की स्थिति में इसकी अनुमति थी।

    कोविड -19 उपचार प्रोटोकॉल भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद, एम्स नई दिल्ली, अन्य के परामर्श से तैयार किया गया है। कोविड-19 महामारी के शुरुआती महीनों में प्लाज्मा थेरेपी कोविड-19 के एक ‘उपचार’ के रूप में लोकप्रिय हो गई थी और इसे मध्यम से गंभीर मामले की प्रगति को रोकने में प्रभावी माना गया था। हालांकि, जैसे ही अधिक शोध किए गए तो यह प्रमाणित हो गया है कि प्लाज्मा थेरेपी कोविड-19 रोगियों पर संक्रमण की गंभीरता को कम करने या नियंत्रित करने में प्रभावी नहीं है।

    कोविड-19 के लिए गठित राष्ट्रीय कार्य बल-आईसीएमआर की पिछली सप्ताह हुई बैठक के दौरान सभी सदस्य प्लाज्मा थेरेपी को नैदानिक प्रबंधन दिशा-निर्देश से हटाने पर सहमत हुए थे, जिसके बाद सरकार का यह निर्णय सामने आया है। उल्लेखनीय है कि कुछ चिकित्सा विशेषज्ञों और वैज्ञानिकों ने प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के. विजयराघवन को देश में कोविड-19 उपचार के लिए प्लाज्मा थेरेपी के उपयोग को तर्कहीन और गैर-वैज्ञानिक उपयोग करार देते हुए आगाह किया था।

    चीन और नीदरलैंड में भी इसी तरह के अध्ययनों ने पहले अस्पताल में भर्ती कोविड-19 रोगियों में हालत में सुधार के लिए सीपीटी के किसी भी तरह के लाभ को नहीं पाया है। दरअसल प्लाज्मा थेरेपी में कोविड-19 से ठीक हुए मरीज के खून में मौजूद एंटीबॉडी को गंभीर मरीजों को दिया जाता है। आईसीएमआर की तरफ से 14 मई को जारी एक रिपोर्ट के हवाले से कहा गया है कि हजारों मरीजों पर प्लाज्मा थेरेपी के परीक्षण करने के बाद पाया गया कि इससे मरीजों की मौत और अस्पताल से डिस्चार्ज होने के अनुपात में कोई फर्क नहीं आया है।

    By आदित्य सिंह

    दिल्ली विश्वविद्यालय से इतिहास का छात्र। खासतौर पर इतिहास, साहित्य और राजनीति में रुचि।

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