Thu. Mar 28th, 2024
    Ahir regiment demand and Protest

    गुरुग्राम में खेड़कीदौला टोल पर पिछले कुछ समय से भारतीय सेना में अहीर रेजीमेन्ट की मांग को लेकर संयुक्त अहीर रेजिमेंट मोर्चा के बैनर तले लोग धरने पर बैठे हैं। अहीर रेजिमेंट की मांग कोई नया नहीं है। दक्षिण हरियाणा (इसे अहीरवाल क्षेत्र भी कहते हैं) के लोग बहुत लंबे समय से अहीर रेजिमेंट की मांग करते आ रहे हैं। 2018 में इन लोगों ने 9 दिन तक इसी मुद्दे को लेकर भूख हड़ताल भी किया था जिसे राजनीतिक हस्तक्षेप और आश्वासनों के बाद खत्म करवाया गया था।

    अहीर रेजिमेंट की मांग का मुद्दा अब धीरे धीरे सड़क से उठकर संसद तक पहुंच चुका है। गुरुग्राम के इस आंदोलन को अभी तक कई राजनीतिक दलों और सियासी चेहरों का समर्थन मिल चुका है।

    बसपा नेता और उत्तर प्रदेश के जौनपुर से लोकसभा सांसद श्याम सिंह यादव, राजद नेता और राज्यसभा सदस्यमनोज झा, हरियाणा से कांग्रेस नेता और राज्य सभा सदस्य दीपेंद्र हुड्डा आदि कई बड़े चेहरे अहीर रेजिमेंट की इस मांग को संसद भवन में उठा चुके हैं।

    कितना जायज़ है मांग

    प्रथम दृष्टया तो अहीर रेजिमेंट की मांग को लेकर सबकुछ सही लगता है। इसके पीछे जो तर्क दिया जाता है कि जब सेना में कई अन्य जाति-आधारित रेजिमेंट जैसे राजपूत रेजिमेंट, राजपुताना राइफल्स, जाट रेजिमेंट, सिख रेजिमेंट, डोगरा रेजिमेंट आदि हैं, तो अहीर रेजिमेंट की मांग भी अपनी जगह सही है।

    लेकिन यह तर्क कहानी के सिर्फ एक पक्ष को सामने लाता है। हमें जाति-आधारित रेजिमेंट के गठन से लेकर उसके अभी तक के प्रचलन को समझना होगा।

    यह सच है कि भारतीय सेना में आज भी जाति-आधारित या क्षेत्र-आधारित रेजिमेंट हैं लेकिन हमें यह भी जानना जरूरी है कि यह सब अंग्रेजों के बनाये रेजिमेंट हैं जिसे आज तक एक परंपरा के तौर पर जारी रखा गया है। आजादी के बाद से भारत ने कोई भी जाति-आधारित रेजिमेंट का गठन नहीं किया है और यही बात अहीर रेजिमेंट की मांग को कमजोर कर देती है।

    जातिगत रेजिमेंट: संक्षिप्त इतिहास

    अंग्रेज जब भारत आये तो वे अपने साथ कोई बड़ी सेना लेकर नहीं आये थे। बाद में भी ब्रिटिश इंडिया की सेना में अफसर अंग्रेज थे लेकिन सैनिक मुख्यतः भारतीय थे।

    अंग्रेजों ने भारत मे कई युद्ध किये जैसे कभी बंगाल में प्लासी का युद्ध , बिहार में बक्सर का युद्ध, पंजाब में सिक्खों से युद्ध , मराठों से, राजपूतों से, सिक्खों से, पठानों से, अफगानों से आदि आदि। इन सब युद्ध के अनुभवों के आधार पर भारत के जातियों को सेना में रिक्रूटमेंट के लिहाज़ से 2 भागो में बांटा- एक मार्शल क्लास (Martial class) और दूसरा (Non Martial class)।

    मार्शल क्लास में उन जातियों को रखा गया जिन्हें अंग्रेज युद्ध के हिसाब से ज्यादा उपयोगी समझते थे। इसमें ज्यादातर उत्तर भारत के राजपूत, ब्राम्हण, सिक्ख, मुस्लिम आदि थे। इसकी वजह थी- इन जातियों के लोगों का शारीरिक सौष्ठव और कुशाग्र होना।

    नॉन मार्शल क्लास वह था जिन्हें अंग्रेजो ने युद्ध के लिए उपयुक्त नहीं समझा। इसमें उन जातियों को भी बाद में रख दिया गया जो 1857 कि क्रांति में अंग्रेजो के खिलाफ बड़ी चुनौती साबित हुए जैसे मुस्लिम या बंगाली।

    दरअसल हमें समझना होगा कि मार्शल क्लास जाति की वजह से युद्ध के लिये उपयुक्त नहीं थी, बल्कि पोषण और अच्छे खान-पान की वजह से इनका शारीरिक और मानसिक विकास अच्छा था। लेकिन तब (19वीं सदी)  विज्ञान की अपनी सीमाएं थी इसलिए जातियां की वीरता का परिचायक बन गयी।

    अंग्रेज भारत मे जैसे-जैसे युद्ध एक के बाद एक युद्ध लड़ते गए, उन्हें भारत के जातियों और भारतीयों की वीरता का अंदाजा होने लगा। इसी आधार पर जातिगत रेजीमेंट्स बनाये जाने लगे।

    उदाहरण के लिए जब सिक्खों से जंग हुई तो महाराणा रंजीत सिंह के बाद बिना किसी कुशल नेतृत्व के भी सिक्खों ने अंग्रेजों के नाको चने चबबा दिए। इस से प्रभावित होकर सिख रेजिमेंट बना दिया गया। ऐसे ही नेपाल युद्ध मे।गोरखा लोगो की बहादुरी को देखकर गोरखा रेजिमेंट बना या अफगान युद्ध मे बलूच लोगों की वीरता से बलूच रेजिमेंट आदि।

    यह प्रथा भारत के आजादी तक चलती रही लेकिन आज़ाद भारत ने इस प्रथा को आगे जारी नही रखा। यह जरूर है कि पुराने जाति-आधारित रेजिमेंट्स के नाम आज भी ज्यों का त्यों है लेकिन उसके ढांचागत संरचना में परिवर्तन किया गया।

    फिर भारत ने आज़ादी के बाद इनको हटा क्यों नहीं दिया?

    भारत जब आज़ाद हुआ तो भारतीय सेना की कमान दी गयी फील्ड मार्शल के. एम. करियप्पा को। करियप्पा इस बात को समझते थे कि आज़ाद भारत का तत्कालीन वैश्विक परिदृश्य में आगे बढ़ने में काफ़ी चुनौतियों का सामना करना होगा।

    करियप्पा साहेब का अंदेशा जायज़ भी निकला। आज़ाद भारत के शुरुआती दिन अच्छे नहीं रहे। एक के बाद एक कुल 4 जंग भारत ने आज़ादी के 25 वर्षों के भीतर देख लिए। इसलिये करियप्पा का सेना को मजबूत करने वाले तर्क को ज्यादा तवज्जो दी गई।

    श्री करियप्पा ने सेना के ढांचा को बिना छेड़छाड़ किये पहले उसे मजबूत करने का काम किया। इन रेजीमेंट्स के जातिगत होते हुए भी ज्यादातर रेजिमेंट्स को सभी जाति और धर्मो के लोगो के लिए खुला रखा। नतीजतन रेजिमेंट का नाम जरूर किसी जाति के आधार पर था पर उसके जवान जाति-धर्म से मुक्त थे।

    उदाहरण के लिए राजपुताना राइफल्स में राजपूत के साथ जाट भी लगभग बराबर की संख्या में हैं। वहीं राजपुताना रेजिमेंट में राजपूत, गुर्जर, मुस्लिम और बंगाली प्रमुखता से है।

    नेशनल कैडेट कोर (NCC) और टेरीटोरियल आर्मी का गठन किया गया जिसमें जाति-धर्म इत्यादि को संस्थागत ढांचे से दूर रखा गया है। इसलिए अहीर आर्मी की बाद आज आज़ादी के 75 सालों बाद तार्किक कम, राजनीतिक ज्यादा लगती है।

    अहीर सैनिकों का योगदान देश नहीं भूल सकता

    जब जब अहीर सैनिकों के शौर्य और पराक्रम का ज़िक्र किया जाता है तो भारत चीन युद्ध के दौरान रेजांग ला की लड़ाई कोई कैसे भूल सकता है। इस रेजांग ला की लड़ाई में शहीद हुए 120 सैनिकों में 114 अहीर थे। इन जवानों ने तब के लिहाज़ से अपेक्षाकृत बेहद मजबूत चीन की सेना को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था।

    सूबेदार महावीर सिंह यादव, सूबेदार योगेंद्र सिंह यादव आदि जैसे दर्जनों वीर सैनिकों के उदाहरण मौजूद हैं जिनकी वीरता और शौर्य इसलिए नहीं जानी जाती है कि वे अहीर थे, बल्कि इसलिए कि वे देश की रक्षा के लिये अपनी जाति, अपना धर्म, अपना घर, अपना सबकुछ बलिदान करने को तैयार थे।

    अहीर रेजिमेंट की राह में हैं कई अड़चने

    एक बार को मान लिया जाए कि अहीर रेजिमेंट के गठन की मंज़ूरी मिल भी जाती है तो क्या बात यहीं पट थम जाएगी? उत्तर है- “नहीं” । फिर ऐसी कई और रेजीमेंट्स की मांग शुरू हो जाएगी।

    अभी यूपी विधानसभा चुनाव में सपा के अखिलेश यादव ने “अहीर रेजिमेंट” बात अपने घोषणा पत्र में की तो दूसरी तरफ भीम आर्मी चीफ चंद्रशेखर आज़ाद ने चमार रेजिमेंट की मांग कर दी।

    ऐसे में अगर एक को मान्यता मिल गया तो डर है कि ये सिलसिला थमने का नाम नही लगा। भारत जातियों से भरा देश है, सेना भी जातियों में बंटी टुकडियों का समूह बनकर रह जाएगी।

    By Saurav Sangam

    | For me, Writing is a Passion more than the Profession! | | Crazy Traveler; It Gives me a chance to interact New People, New Ideas, New Culture, New Experience and New Memories! ||सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ; | ||ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ !||

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