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    अविश्वास प्रस्ताव

    भारत की राजनीति में इन दिनों अलग ही स्तर का आक्रोश है। जब से कांग्रेस का 60 सालो के राज का अंत हुआ है तब से देश की राजनीति ने अलग मोड़ ले लिया है।

    2014 के चुनावो में बम्पर बहुमत के साथ भारतीय जनता पार्टी ने नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनाई। अब 2019 के लोक सभा चुनाव सर पर है। इसी के चलते कोई भी दल एक दूसरे को छेड़ ने का मौका नहीं छोड़ते।

    हाल ही में विपक्ष द्वारा संसद में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव आया जिसमें दोनों छोर से एक दूसरे पर तमाम आरोप लगे। इस प्रस्ताव कि बागडोर कांग्रेस पार्टी ने संभाली।

    शुक्रवार को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अलग ही मूड में लगे उन्होंने सरकार पर आक्रामक अंदाज़ में इलज़ाम लगाए एवं एक एक करके सरकार पर सवाल दागे। राहुल गांधी ने कहा कि ” बीजेपी का भाषण जुमला हैं पहला जुमला 15 लाख रुपये हर एक के खाते में। दूसरा जुमला, दो करोड़ रोज़गार हर साल। केवल चार लाख लोगों को ही रोज़गार मिला है। जबकि वादा दो करोड़ रोज़गार का हुआ था।

    उन्होंने आगे कहा कि पीएम हर जगह रोज़गार देने की बात करते हैं, लेकिन क्या हुआ”? इसके जवाब में प्रधान मंत्री मोदी ने बड़े ही तस्सली बख्श तरीके से विपक्ष के सवालों का उत्तर दिया। उन्होंने कहा कि “यह सरकार का फ्लोर टेस्ट नहीं बल्कि विपक्ष का फ्लोर टेस्ट है। विपक्ष अपने कुनबे को बिखेरने से रोकना चाहता है।

    उन्होंने कहा कि ‘यदि विपक्ष को अपने साथियों की परीक्षा लेनी है तो कम से कम सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव तो ना लाईए। हम यहां सवा सौ करोड़ देशवासियों के आशीर्वाद से आए हैं’।

    पर इस अविश्वास मत से दोनों के लिए कई सकारात्मक बाते सामने आई है। भाजपा ने यह प्रस्ताव एक बहुमत के साथ गिराया तो उसका मनोबल बहुत ही ऊँचा है एवं कांग्रेस ने राहुल गाँधी को एक मज़बूत नेता के तौर पर संसद में उतारा जिससे विपक्ष को एक ज़िम्मेदार नेता मिला जिसके सहारे वो आने वाले चुनाव लड़ सकेगी। अब देखना यह दिलचस्प होगा कि आने वाले चुनावो में जनता किसका साथ देती है।

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