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    फ्रीक्वेंसी डिवीज़न और टाइम डिवीज़न मल्टीप्लेक्सिंग frequency division multiplexing in hindi

    विषय-सूचि


    मल्टीप्लेक्सिंग का प्रयोग उन स्थितियों में किया जाता है जहां सिग्नल्स के ज्यादा बैंडविड्थ हों और ट्रांसमिट हो रहे मीडिया का ज्यादा बैंडविड्थ हो। ऐसी स्थिति में ज्यादा संख्या में सिग्नल भेजने कि सम्भावना ज्यादा होती है।

    अगर इन सभी सिग्नल्स को एक में कंबाइन कर दिया जाए और किसी ऐसे लिंक पर भेजा जाये जिसके मीडिया का बैंडविड्थ communicating नोड्स से ज्यादा हो।

    फ्रीक्वेंसी डिवीज़न मल्टीप्लेक्सिंग (Frequency division multiplexing in hindi)

    इसमें बहुत सारे सिग्नल को समान समय पर ट्रांसमिट किया जाता हैऔर प्रत्येक सोर्स अपने सिग्नल को allot किये गये फ्रीक्वेंसी के रेंज में ट्रान्सफर करता है।

    इसमें दो adjacent सिग्नल के बीच एक सूटेबल फ्रीक्वेंसी गैप होता है जो कि ओवरलैपिंग से बचने के लिए किया जाता है। चूँकि सिग्नल दिए गये समय में ही ट्रांसमिट होता है इसीलिए ये collision की सम्भावना को भी कम करता है।

    फ्रीक्वेंसी स्पेक्ट्रम को कई लॉजिकल चैनल में विभाजित किया जाता है जिसमे सभी यूजर को लगता है कि वो किसी ख़ास बैंडविड्थ पर हैं।

    बहुत सारे सिग्नल को एक साथ अलग-अलग फ्रीक्वेंसी बैंड पर भेजा जाता है। रेडियो और टीवी में इसी प्रकार के ट्रांसमिशन का प्रयोग होता है। इसीलिए उनके बीच टकराव रोकने के लिए गार्ड बैंड का प्रयोग किया जाता है।

    टाइम डिवीज़न मल्टीप्लेक्सिंग (Time division multiplexing in hindi)

    ये तब होता है जब मीडिया का डाटा ट्रांसमिशन रेट सोर्स से ज्यादा होता है और हर एक सिग्नल को एक निश्चित मात्र में समय allot किया हुआ होता है।

    ये इतनी कम अवधि होती है कि ऐसा लगता है कि सभी ट्रांसमिशन एक साथ हो रहे हैं। फ्रीक्वेंसी डिवीज़न मल्टीप्लेक्सिंग में सारे सिग्नल समान समय पर ही कार्य करते हैं लेकिन टाइम डिवीज़न मल्टीप्लेक्सिंग में सारे सिग्नल अलग-अलग समय में समान फ्रीक्वेंसी पर कार्य करते हैं।

    इसके निम्न प्रकार होते हैं:

    सिंक्रोनस TDM (synchronus time division multiplexing in hindi)

    इसमें टाइम स्लॉट पहले से असाइन किया हुआ रहता है और फिक्स्ड होता है। ये स्लॉट तब दिया जाता है जब सोर्स समय पर डाटा के साथ तैयार नहीं हो। ऐसी स्थिति में स्लॉट को खाली ट्रांसमिट किया जाता है। इसे digitalised voice स्ट्रीम को मल्टीप्लेक्स करने के कार्य में उपयोग किया जाता है।

    Asynchronous TDM

    इसमें स्लॉट को डायनामिक रूप से allocate किया जाता है और ये सोर्स के रेडी स्टेट और गति पर निर्भर करता है। ये टाइम स्लॉट को चैनल की जरूरत के आधार पर डायनामिक रूप से allocate करता है और चैनल की कैपेसिटी को बचाता है।

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    By अनुपम कुमार सिंह

    बीआईटी मेसरा, रांची से कंप्यूटर साइंस और टेक्लॉनजी में स्नातक। गाँधी कि कर्मभूमि चम्पारण से हूँ। समसामयिकी पर कड़ी नजर और इतिहास से ख़ास लगाव। भारत के राजनितिक, सांस्कृतिक और भौगोलिक इतिहास में दिलचस्पी ।

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