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    सबरीमाला मंदिर: विरोध प्रदर्शनकारी ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि धार्मिक स्थलों में भेदभाव पर संवैधानिक बार लागू नहीं होता

    सबरीमाला मंदिर के बोर्ड ने मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर अपने ही फैसले को पलटने का निर्णय किया है।

    इसके पहले केरल सरकार ने इस मामले में टिप्पणी करते हुए कहा था कि इस मुद्दे पर सामाजिक शांति प्रभावित जरूर हुई है पर इस वजह से किसी असंवैधानिक कार्य को अंजाम नहीं दिया जा सकता है।

    वहीं दूसरी ओर केरल की विभिन्न रानीतिक पार्टियों का यह मानना है कि सबरीमाला मंदर का विषय किसी धर्म से जुड़ी आस्था का विषय है, ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को इस तरह से आस्था के मामले में दखल नहीं देना चाहिए।

    मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ जिसमें  न्यायाधीश एएम खानविलकर, न्यायाधीश डीवाई चन्द्रचूर्ण, न्यायाधीश आरएफ़ नरीमन व न्यायाधीश इन्दु मल्होत्रा शामिल थीं, इस बेंच ने वरिष्ठ वकीलों द्वारा लगाई गईं 56 याचिकाओं पर सुनवाई की है।

    देवसोंम बोर्ड जो कि सबरीमाला मंदिर की देखरेख करता है, उसने अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश को मानने की बात कही है और सीधे तौर पर यह स्वीकार किया है कि अब मंदिर में महिलाओं को प्रवेश दिया जाएगा।

    हालाँकि बोर्ड के इस फैसले के विरोध में सामने आते हुए बहुत से लोगों ने आपत्ति जताते हुए यह तर्क दिया है कि मंदिर में स्थापित भगवान अय्यियप्पा ब्रह्मचारी हैं, ऐसे में कोर्ट या बोर्ड महिलाओं को मंदिर में प्रवेश की इजाज़त कैसे दे सकता है?

    इसके पहले मंदिर बोर्ड ने भी सुप्रीम कोर्ट में यह तर्क पेश किया था कि 10 साल से 50 साल तक की महिलाओं का प्रवेश मंदिर में इस लिए वर्जित है क्योंकि इस उम्र के दौरान ही उन्हे मासिक धर्म होता है, ऐसे में मंदिर की पवित्रता को बरकरार रखने के लिए इन महिलाओं को मंदिर में प्रवेश नहीं दिया जा सकता है।

    हालाँकि अब बोर्ड की तरफ से जिरह करने पहुंचे वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने पीठ के समक्ष यह बताया है कि बोर्ड ने पुरुषों और महिलाओं के समान अधिकारों के चलते अपना फैसला वापस ले लिया है। द्विवेदी ने बताया है कि बोर्ड ने अपने फैसले के संदर्भ में एक प्रार्थना पत्र पहले ही दाखिल कर दिया है।

    द्विवेदी का कहना है कि महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित नहीं किया जा सकता है।

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