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    अमित शाह और उद्धव ठाकरे

    2019 के चुनावी दंगल में उतरने से पहले सभी पार्टियां विरोधी और साथी तय करने में जुटी है।

    हाल में हुए उपचुनावों ने एक महागठबंधन अथवा एकजुट विपक्ष के लिए ढांचा तैयार कर दिया है। कर्नाटक में कांग्रेस जेडीएस के गठबंधन ने जैसे भाजपा के सपनों पर पानी फेरा उसी तरह उत्तर प्रदेश में बसपा और सपा का गठबंधन भाजपा की नींदें उड़ाने के लिए काफी है।

    ऐसे में भाजपा अपने पुराने साथियों की तरफ देख रही है।

    शिवसेना पर दांव

    भाजपा अध्यक्ष ने शिवसेना सुप्रीमो उद्धव ठाकरे से मुलाकात की व सिद्धांतिक गठबंधन के लिए सहमति बना ली है।

    अब 2019 का लोकसभा चुनाव भाजपा व शिवसेना एक साथ लड़ेंगे। सीट बंटवारे पर अभी अंतिम फैसला नहीं आया है, पर आकलन है कि 2014 के फार्मूले पर ही इस बार भी यह पार्टियां टिकी रहेंगी।

    2014 में भाजपा 24 सीटों पर जबकि शिवसेना 20 सीटों पर चुनाव लड़ी थी जिसमें भाजपा को 23 सीटों पर जीत मिली वहीं शिवसेना 18 सीटों पर विजय हुई थी। हालांकि 2014 के बाद दोनों पार्टियों में खासी कड़वाहट पैदा हो गई। व शिवसेना सरकार से बाहर भी निकल गई थी। पर यह नाराजगी राजनैतिक ही प्रतीत होती है। क्योंकि केंद्र सरकार से नाराज होने के बावजूद शिवसेना ने महाराष्ट्र विधानसभा में देवेंद्र फडणवीस की सरकार को बचाए रखा था।

    लोकसभा चुनाव में साथ आने के बाद विधानसभा के समीकरण पर भी नजर रहेगी अभी महाराष्ट्र में शिवसेना के समर्थन से ही भाजपा की सरकार चल रही है।

    हालांकि शिवसेना सरकार में शामिल नहीं है देखना यह है कि आगे की रणनीति क्या होगी। साथ इस बात पर भी नजर रहेगी कि नरेंद्र मोदी को 2014 में बिना शर्त समर्थन करने वाले महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के राज ठाकरे इस बार कांग्रेस-एनसीपी के साथ शामिल तो नहीं हो जाते हैं। क्योंकि हाल में उन्होंने अपना सुर बदल लिया है। मोदी सरकार की जमकर आलोचना करते हैं व नोटबंदी के समय भी उन्होंने खुल कर विरोध जताया था।

    बिहार में कुशवाहा संकट

    आज बिहार में एनडीए “एकता” बैठक के दौरान राष्ट्रीय लोक समता दल के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा अनुपस्थित रहे। उन्होंने ना आ पाने की असमर्थता जताते हुए अपनी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को भेज दिया था।

    लोकसभा चुनाव के चार साल बाद “विकास व एकता” को दर्शाने के लिए यह बैठक बुलाई गई थी। पर कुशवाहा का ना  पहुंचना एनडीए की एकता पर सवाल खड़े करता है। बिहार में एनडीए के घटक दल जदयू, लोक जनशक्ति पार्टी, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी व भाजपा हैं।

    लोक समता पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा हाल में भाजपा के साथ बढ़ती जदयू की नजदीकियों के कारण नाराज चल रहे हैं। उपेंद्र कुशवाहा बिहार में कुशवाहा समाज के बड़े नेता हैं। कुशवाहा पिछड़ी जातियों में यादवों के बाद राजनैतिक नजरिये से सबसे महत्वपूर्ण जाति मानी जाती है। जिनका वोट आराम से खेल को बदल सकता है।

    उपेंद्र कुशवाहा पहले जदयू के ही नेता थे। पर 2013 में उन्हें नीतीश कुमार ने अनुशासन तोड़ने के कारण पार्टी से निकाल दिया था। जिसके बाद उन्होंने अपनी पार्टी बनाई वर्तमान में जब जदयू भाजपा के साथ वापस आ गई है, तब कुशवाहा का नाराज होना कुछ स्वाभाविक है। एनडीए की बैठक में उनकी अनुपस्थिति इस नाराजगी को दर्शाता है।

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