Sat. Apr 20th, 2024
    फारुक अब्दुल्ला

    जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और हमेशा से ही अपनी विवादित छवि के लिए प्रसिद्ध फारुक अब्दुल्ला ने सोमवार को केंद्र सरकार को ललकारते हुए कहा कि आप (सरकार) पाक अधिकृत कश्मीर की क्या बात करते है जनाब, अगर हिम्मत है तो पहले श्रीनगर के लाल चौक पर राष्ट्रीय ध्वज फहराकर दिखाए तब कहीं जाके पीओके में तिरंगा फहराने की बात करना। आपको बता दें कुछ समय पहले भी इनका एक बयान आया था जिसमें इन्होने कहा कि “पीओके तुम्हारे (भारत) बाप का नहीं है”

    शायद उनका ऐसा कहना उनकी हर बार की आदत बन चूका है और उनको कोई कुछ कह नहीं सकता इस बात का शायद गुरुर हो गया है, तो उनसे एक बात जरूर कहना चाहेंगे कि फारुख साहब थोड़ा संभल के बोला कीजिए क्यूंकि हम लोगों का “गुरुर और सुरूर बड़े प्यार से तोड़ते है” और हां अगर गुरुर दिखाना है तो उस माटी पे कर, जिस माँ के आँचल में पला है सालों से उस छाती पे कर

    वह कहते है ना “लड़ रहा था बेबाक होकर, आसां लगने लगी थी हर मंज़िल मुझे, पर कभी सोचा ना था जिनके लिए सीने पे ज़ख्म लिए फिरता था, आज वही कह देंगे बुज़दिल मुझे”, कुछ ऐसा ही तो हाल होता है उन जवानों का जब फारुख जैसे नेता अपनी सियासत को गरमाने के लिए कुछ इस तरह का देश विरोधी बयान देते है। पर फारुख अबुद्ल्ला को यह समझना चाहिए कि “सियार भेड़ियों से डर सकती, सिंघों की औलाद नहीं, भारतवर्ष की इस भूमि की अभी तुम्हे पहचान नहीं”

    दरअसल, कांग्रेस नेता एवं पूर्व सांसद जी एल डोगरा की 30वीं पुण्य तिथि के मौके पर उन्हें पुष्पांजलि अर्पित करने के बाद पत्रकारों से साक्षात्कार करते हुए कश्मीरी नेता फारुख अब्दुल्ला ने पाक अधिकृत कश्मीर के विषय में कहा कि “हम लोग वहां तिरंगा लहराने की बात करते है बल्कि मैं उनसे कहता हूं कि वे पहले श्रीनगर के लाल चौक पर जाकर तिरंगा फहराएं हिम्मत है तो”। उनके इस बयान के बाद नेशनल कॉन्फ्रेंस उनके बचाव में आते हुए कह रही है कि आप सच सुनना पसंद नहीं करते तो भुलावे में ही रहें, सच यह है कि (पीओके) हमारा हिस्सा नहीं है और यह (जम्मू-कश्मीर) उनका (पाकिस्तान का) हिस्सा नहीं है, यह सच है’’।

    नहीं पता अब कुछ लोग आके कहेंगे कि नेता जी के कहने का वो आशय नहीं था उन्होंने बस आज के हालातों को देखते हुए सबके सामने अपने दिल की बात रख दी, पर शायद एक बात उन्हें हमेशा याद रखनी चाहिए अगर वो हिम्मत की बात करते हैं, और ललकार की बात करते है तो बिस्मिल अज़ीमाबादी कि वही बात याद आती है,

    ऐ वतन, करता नहीं क्यूँ दूसरी कुछ बातचीत,
    देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है,
    ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत, मैं तेरे ऊपर निसार,
    अब तेरी हिम्मत का चरचा ग़ैर की महफ़िल में है,
    सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है।