Fri. Mar 29th, 2024
    अजनाला पुलिस और वारिस पंजाब दे समर्थको के बीच की झड़प

    Punjab’s Ajnala Incident: पंजाब (Punjab) में पिछले हफ़्ते गुरुवार को अमृतसर के अजनाला के एक पुलिस थाने (Ajnala Police Station) पर जो अप्रत्याशित दृश्य देखने को मिला; वह ऐसा लगा मानो पंजाब (Punjab) में एक बार फिर 70 और 80 के दशक का वह माहौल लौटने लगा है जब राज्य में कानून-व्यवस्था तार-तार थीं और फ़िज़ा में अराजकता हावी थी।

    दरअसल पंजाब पुलिस (Punjab Police) ने लवप्रीत सिंह नाम के एक व्यक्ति को कई आरोपों में गिरफ्तार किया था जिसमें अपहरण जैसा संगीन आरोप भी शामिल है। लेकिन अमृतसर के अजनाला पुलिस थाने पर जहाँ लवप्रीत को रखा गया था, अचानक लोगों का एक बड़ा हुज़ूम जमा हो गया।

    कथित तौर पर लवप्रीत सिंह का संबंध पंजाब में पनप रही एक कट्टरवादी संस्था “वारिस पंजाब दे (Waris Punjab De)” के मुखिया अमृतपाल सिंह से है। यह भीड़ पुलिस और प्रशासन पर अमृतपाल सिंह (Amrit Pal Singh) के आह्वान पर लवप्रीत सिंह को रिहा करने का दवाब बनाने के मकसद से जमा थे।

    लोगों की इस भीड़ में कई लोग बंदूक और तलवार जैसे हथियारों के साथ थे। नतीजतन व पुलिसकर्मी जिन पर आम जनता की सुरक्षा का जिम्मा है, वे खुद इस भीड़ के आगे बेबस मजबूर दिखाई दे रहे थे।

    यह सच है कि पंजाब पुलिस (Punjab Police) के पास प्रदर्शनकारियों से सीधे हिंसक तरीके से नहीं निपटने का आदेश नहीं रहा हो, लेकिन यूँ हाँथो में हथियार होने के बावजूद चंद भीड़ के आगे पुलिस बल का मूकदर्शक बना रहना, पंजाब की शाशन प्रशासन पर गहरे सवाल का मंजर है।

    बाद में अजनाला कोर्ट ने लवप्रीत सिंह को चंद घंटों के भीतर रिहा करने के आदेश दे दिया। सवाल यह कि क्या पंजाब पुलिस ने बिना कोई ठोस वजह के ही लवप्रीत सिंह को गिरफ्तार किया था? या फिर भीड़ के दवाब और बेचारी बनी पुलिस ने अदालत में अपना रुख नरम कर लिया? ऐसे में कई सवाल हैं जिसका जवाब पंजाब पुलिस को ढूंढना ही होगा।

    “वारिस पंजाब दे” और उसका खालिस्तान (Khalistan) प्रेम

    "वारिस पंजाब दे" संस्था के मुखिया अमृतपाल सिंह
    “वारिस पंजाब दे” संस्था के मुखिया अमृतपाल सिंह (Image Source: The Indian Express)

    पिछले कुछ महीनों में पंजाब में कट्टरपंथ की एक नई लकीर खींची है, इस से कोई इनकार नहीं कर सकता। इसके लिए जिस संस्था को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, उसका नाम है- वारिस पंजाब दे (Waris Punjab De)”।

    इस संस्था की स्थापना पंजाबी अभिनेता व एक्टिविस्ट दीप-सिद्धू ने किया था। दीप-सिद्धू की मृत्यु के बाद आजकल इसका नेतृत्व पिछले साल दुबई से लौटा एक व्यक्ति अमृतपाल सिंह करता है।

    पिछले दिनों अजनाला के पुलिस थाने पर जो हुआ और जिस भीड़ के दवाब में वहां की पुलिस किंकर्तव्यविमूढ़ बनकर अपहरण जैसे मामलों में आरोपी लवप्रीत को छोड़ने पर मजबूर दिखी; वह भीड़ इसी अमृतपाल सिंह (Amrit Pal Singh) के समर्थकों की थी। इस भीड़ में लोग हथियारों से लैस थे और तथाकथित रूप से खालिस्तान समर्थक बताए जा रहे हैं।

    इंडियन एक्सप्रेस ने 26 फरवरी को ऑनलाइन एक रिपोर्ट में महेंद्र सिंह मनराल (Mahendra Singh Manral) के हवाले से लिखा है कि पंजाब के DGP गौरव यादव ने लगभग महीने भर पहले हीं प्रधानमंत्री और गृहमंत्रालय को पंजाब में अमृतपाल सिंह (Amrit Pal Singh) के बढ़ते प्रभावों को लेकर अवगत करवाया था।

    इस रिपोर्ट के मुताबिक, 22 जनवरी को दिए एक प्रेजेंटेशन – “Khalistan Extremism- Communication and Logistics Network” में DGP पंजाब ने यह कहा था कि, ” पंजाब में जमीन पर हालात, युवाओं में नशे में लत, बेरोजगारी तथा कई जिलों में प्रशासनिक तंत्र का अपेक्षाकृत कमजोर होने की वजह से ठीक नहीं है, और इसका फायदा कुछ उग्र संगठनों द्वारा उठाया जा सकता है।”

    अजनाला में अमृतपाल सिंह द्वारा पुलिस पर भीड़, हथियारों और गुरुग्रंथ साहिब को कवर बनाके दवाब बनाना फिर अपने साथी लवप्रीत को रिहा करवा लेना- जैसी घटना एकदम उसी ढर्रे पर मालूम पड़ती हैं जिसका अंदाज़ा DGP, पंजाब ने केंद्र के सामने जाहिर किया था।

    अतीत में आतंक से पीड़ित राज्य

    अगर अमृतपाल सिंह और उसके संगठन “वारिस पंजाब दे” के खालिस्तान (Khalistan) प्रेम वाली बात में जरा भी सच्चाई है तो यह निश्चित ही पंजाब और देश भर के आंतरिक सुरक्षा के लिहाज़ से बेहद संवेदनशील मुद्दा है।

    अमृतपाल सिंह आज पवित्र गुरु ग्रंथ साहिब को अपना ढाल बना रहा है, और सिक्ख धर्म की बातें कर रहा है। यद्यपि कि वह बातचीत में बेहद शातिर मालूम होता है लेकिन उसकी हरकतें और हिमाकतें कतई भी सिक्ख धर्म के उसूल नही हो सकते।

    पंजाब ने आतंक के कुछ ऐसे ही बुरे दौर अतीत में देखे हैं। भिंडरावाले ने अकालतख्त के पवित्र स्थान से आतंक का जो दौर पंजाब में चलाया था, उसने न जाने कितनी की कुर्बानियां पंजाब के लोगों ने दीं थी। लोग शाम ढलने से पहले घर लौटने पर मजबूर थे।

    बड़ी मुश्किल से राज्य में हालात बीते 2 दशकों में सामान्य हुआ है। जाहिर हैं, पंजाब की आवाम भी नहीं चाहेगी कि कोई खालिस्तान समर्थक फिर से सत्ता और प्रशासन के लिए ऐसी चुनौती बन जाये कि राज्य एक बार फिर उन भयावह अराजकता वाले दिन को देखने पर मजबूर हो।

    पंजाब की सत्ता में बैठी आम आदमी पार्टी पर आरोप हमेशा से लगते रहें है कि उसे खालिस्तान समर्थकों का समर्थन हासिल है। दुसरा सच यह भी है कि, जब से भगवंत मान की सरकार बनी है, शासन-प्रशासन के मोर्चे पर कई ऐसे मौके आये हैं जहाँ सरकार विफल और विवश नज़र आई है।

    यह ध्यान रखने की बात है कि पंजाब एक सीमावर्ती और अतिसंवेदनशील राज्य है। लाहौर और अमृतसर की बीच की दूरी मात्र 30 KM की है। ऐसे में पाकिस्तान के लिये भारत को परेशान करने का कोई भी मौका उत्पन्न करना एक मुश्किल हालात पैदा कर सकती है।

    By Saurav Sangam

    | For me, Writing is a Passion more than the Profession! | | Crazy Traveler; It Gives me a chance to interact New People, New Ideas, New Culture, New Experience and New Memories! ||सैर कर दुनिया की ग़ाफ़िल ज़िंदगानी फिर कहाँ; | ||ज़िंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ !||

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