Thu. Mar 28th, 2024
    तवांग

    भारत और चीन के बीच में सीमा क्षेत्रों को लेकर विवाद बना हुआ है। भारत चीन एक-दूसरे को प्रतिस्पर्धी देश भी मानते है। दोनों देशों के बीच में कई बार तनाव का माहौल देखा गया है। डोकलाम विवाद को लेकर भी चीनी व भारतीय सेना आमने-सामने हो गई थी। भारत के अभिन्न राज्य अरूणाचल प्रदेश को लेकर भी चीन व भारत के बीच में विवाद बना हुआ है।

    अरूणाचल प्रदेश भारत का पूर्ण राज्य है। जबकि चीन में अरूणाचल प्रदेश को दक्षिणी तिब्बत कहा जाता है। इस क्षेत्र में भारत की संप्रभुता अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त है। अधिकांश अंतरराष्ट्रीय नक्शों में भी अरूणाचल को भारत का ही हिस्सा बताया जाता है। वहीं चीन भी इस पर खुद के ऐतिहासिक दावे प्रस्तुत करता है।

    भारत व चीन के बीच में मुख्य विवाद राज्य के उत्तरी भाग तवांग को लेकर है। जहां भारत का सबसे बड़ा मठ और एक प्राचीन व्यापार शहर है। जब भी कोई भारतीय नेता अरूणाचल प्रदेश का दौरा करता है तो चीन अपना विरोध दर्ज करवाता है।

    अरूणाचल को लेकर भारत-चीन विवाद क्या है?

    मुख्य रूप से दोनो देशों के बीच में सीमा के रूप में मैकमोहन लाइन को स्वीकार करने से चीन इंकार करता है। तिब्बत के निकटतम हिस्से के रूप में बड़े पैमाने पर भूमि का दावा ठोकता है। 1950 दशक के अंत के बाद चीन ने तिब्बत पर कब्जा किया। चीन ने पाकिस्तान की सीमा से जम्मू और कश्मीर के लद्दाख का दूरदराज हिस्सा अक्साई चीन के बडे हिस्से (लगभग 38,000 वर्ग किमी) पर कब्जा किया।

    इस इलाके को शिंझियांग प्रांत से जोड़ने के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग का भी निर्माण किया। जिस पर भारत इसे अवैध कब्जा बताता है। तिब्बत, सिक्किम और उत्तर प्रदेश सीमा को लेकर चीन के साथ विवाद है वहीं पूरे अरूणाचल प्रदेश को चीन अपना हिस्सा बताता है।

    अरूणाचल प्रदेश का इतिहास

    अधिकतर लोग अरूणाचल के प्राचीन इतिहास को नहीं जानते है। यह असम की सीमाओं से लगता है जहां पर कई पुराने प्रसिद्ध मंदिर है। यह राज्य तिब्बती, बर्मा और भूटानी संस्कृतियों से भी प्रभावित है। 16वीं सदी में यहां पर तवांग मठ का निर्माण किया गया था।

    यह तिब्बती बौद्धों के लिए सबसे महत्वपूर्ण स्थलों में से एक माना जाता है। इसे तिब्बतियों ने बसाया था।  प्राचीन काल में, भारतीय साम्राज्यों और तिब्बती साम्राज्य सद्भाव में थे। इसलिए दोनो के बीच में कभी कोई सीमा नहीं खींची गई।

    आधुनिक इतिहास

    साल 1912 तक भारत व तिब्बत के बीच में सीमा अधिक स्पष्ट नहीं थी। मुगल और ब्रिटिश इस क्षेत्र पर नियंत्रण नहीं कर पा रहे थे। 1914 में तिब्बत, चीन और ब्रिटिश भारत के प्रतिनिधियों ने सीमाओं को निर्धारित करने के लिए बैठक की थी।

    तिब्बत इतिहास

    इतिहास के मुताबिक तिब्बत को स्वतंत्र क्षेत्र के रूप में माना जाता था। युआन वंश की वजह से तिब्बत चीन के अधीन हो गया। 18 वीं शताब्दी में किंग राजवंश के आने से चीना साम्राज्य का शासन धीरे पडने लगा। 1860 के दशक तक तिब्बत को एक अलग देश के रूप में पहचाना जाने लगा। 1864 के एक नक्शे के मुताबिक तिब्बत को अलग देश दिखाया गया है।

    सिक्किम- अरूणाचल सीमा

    1914 शिमला सम्मेलन

    साल 1914 में तिब्बत को कमजोर लेकिन स्वतंत्र देश माना जाता था। ब्रिटिश भारत ने चीनी प्रतिनिधियों के साथ मिलकर तिब्बत क्षेत्र के बारे में बातचीत की। तवांग को लेकर दोनो देशो के बीच सहमति नहीं बनी थी। बातचीत के समय निर्धारित हो गया था कि तवांग मठ पर भारत का अधिकार होगा। और तिब्बत पर चीन ने अपना नियंत्रण रखा।

    चीन ने तिब्बत को स्वतंत्र नहीं मानकर साल 1950 में पूरी तरह से कब्जा कर लिया। साथ 1914 में हुए शिमला सम्मेलन को भी मान्यता नहीं दी। चीन का कहना है कि तवांग उसके क्षेत्र में आता है। चीन विशेष रूप से मठ पर कब्जा चाहता है क्योंकि यह भारत में तिब्बती बौद्ध धर्म का एक प्रमुख केंद्र है। 1914 में तिब्बतियों ने भारत को तवांग को देने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे।

    भारत के अनुसार अधिकांश राज्य असम से प्राचीन भारत का प्रभाव था। साल 1962 में भारत व चीन के बीच में इसे लेकर युद्ध हुआ। भूगोल स्पष्ट रूप से भारत के पक्ष में है इसलिए चीन को तवांस से अपना हाथ वापस खेंचना पडा। तब से भारत ने इस क्षेत्र पर पूर्ण नियंत्रण स्थापित किया है।

    तवांग समस्या क्या है?

    चीन वैसे तो पूरे अरूणाचल प्रदेश पर ही अपना दावा ठोकता है लेकिन मुख्य रूप से उसकी पैनी नजर तवांग शहर पर है जिसकी सीमाएं भूटान व तिब्बत से लगती है। चीन तवांग के ऊपर विशेष नजर बनाए हुए रहता है। तवांग से चीन अपनी सीमा को मजबूत करना चाहता है।

    मैकमोहन लाइन क्या है?

    ब्रिटिशों ने तिब्बती और चीनी प्रतिनिधियों के साथ शिमला में एक त्रिपक्षीय बैठक बुलाई थी। इस समझौते ने तिब्बत के अधिकांश हिस्सों पर चीन को पूर्णता प्रदान की। इस संधि में जो भी सीमा समझौता हुआ उसे मैकमोहन लाइन के नाम से जाना जाता है। भारत जहां इस लाइन की पालना करता है तो चीन इसे मानने से इंकार करता है।

    यह भी पढ़ें:

    1. भारत भूटान सम्बन्ध