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केंद्र सरकार और आरबीआई

आरबीआई द्वारा सरकार को दिये गए अधिशेष लाभ (सरप्लस प्रॉफ़िट) पर अपनी राय रखते हुए मुख्य आर्थिक सलाहकार संजीव सन्याल ने शुक्रवार को कहा है कि केंद्रीय बैंक के पास चर्चा के लिए एक वैध दायरा होना चाहिए। यह चर्चा बोर्ड स्तर पर ही होनी चाहिए, भले ही केंद्रीय बैंक और केंद्र सरकार के बीच संघर्ष ही क्यों न चल रहा हो।

सीएनबीसी को दिये गए एक इंटरव्यू में सन्याल ने कहा है कि “भारत के लिए इसमें कुछ नया नहीं है। सभी केंद्रीय बैंकें अपने स्तर पर चर्चा करती हैं और यही देश के साथ भी हो रहा है।”

आरबीआई एक्ट के अनुसार प्रत्येक वर्ष बुरे ऋण के प्रावधान, कर्मचारियों को योगदान, परिसंपत्तियों का मूल्यह्रास व पेंशन संबंधी फ़ंड अलग करने के बाद अपने मुनाफे को अपने मालिक यानी केंद्र सरकार को सौप देती है।

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हालाँकि आरबीआई फ़ंड ट्रांसफर के लिए किसी मानक बेंचमार्क का पालन नहीं करती है। इस अधिशेष लाभ के लिए बजट पेश होने से पहले केंद्र सरकार और आरबीआई आपस में बैठ कर बातचीत करते हैं।

कल सेंट स्टीफेन कॉलेज में दिये गए अपने भाषण में आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन ने कहा है कि आरबीआई जो भी नोट जारी करती है, लोग उसे व्यावसायिक बैंकों के पास जमा कर देते हैं, जबकि आरबीआई फ़िक्स डिपॉज़िट पर कीड़ी भी तरह का कोई ब्याज़ नहीं देती है।

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राजन ने बताया है कि बैंके इन पैसों से देश व विदेश की सरकारों से बॉन्ड खरीद लेती हैं। इस तरह से बैंके बिना किसी जोख़िम के ब्याज के रूप में एक बड़ा हिस्सा कमा लेती है।

राजन के अनुसार देश में नोट छापने में आने वाली लागत उस नोट के एवज़ में मिलने वाले ब्याज़ की तुलना में 1/7वां हिस्सा है।

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वहीं देश में केंद्रीय बैंक अपने जोख़िम का आंकलन करने के बाद ही सरकार अधिशेष लाभ भेजती है।

इसी के साथ सरकार केंद्रीय बैंक से अधिक लाभांश चाहती है, जबकि आरबीआई इस लाभांश से भविष्य के संभावित जोख़िम की कल्पना करते हुए अपने रिज़र्व में इजाफा करना चाहती है।

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